डायरेक्टर के आसिफ के जुनून ने ही पूरी कराई थी फिल्म
(शिब्ली रामपुरी)
5 अगस्त 1960 का वह दिन जब मुंबई के मराठा मंदिर सिनेमा में हाथी पर सवार फिल्म मुग़ल-ए -आज़म का प्रिंट पहुंचा था. यह फिल्म कितनी शानदार और कितनी कामयाब रही थी इसके बारे में सभी जानते हैं कि किस तरह से एक जुनूनी डायरेक्टर की ज़िद ने इस फिल्म को पूरा किया था वरना जिस तरह से इस फिल्म को बनाने में अड़चने आईं दूसरा कोई डायरेक्टर होता तो कब का इस फिल्म को छोड़ देता लेकिन डायरेक्टर के आसिफ की जिद ऐसी थी कि वह जिद ना रहकर एक जुनून का रूप धारण कर चुकी थी और आसिफ ने सोच लिया था कि वह इस फिल्म को पूरी करके ही दम लेंगे.
मुग़ल-ए -आज़म एक ऐसी फिल्म है कि जिसको देखकर ना जाने कितने टैलेंटेड लोग स्टार बन गए और आज भी इस फिल्म को जब देखा जाता है तो फिल्म का हर एक दृश्य अपने आप में एक आकर्षण का केंद्र है. फिल्म के डायरेक्टर करीमुद्दीन आसिफ ने दरअसल थिएटर पर एक ड्रामा देखा था जिसके बाद आसिफ ने यह ज़िद पकड़ ली कि मैं अब मुग़ल-ए आज़म बनाऊंगा. इस फिल्म को बनाने में काफी बरस लगे और यदि पूरे वक्त को जोड़ा जाए तो इस फिल्म को तकरीबन 15 साल का समय बनने में लगा था. फिल्म में अकबर का रोल राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर ने किया था और सलीम की भूमिका दिलीप कुमार और अनारकली की भूमिका मधुबाला ने निभाई थी. फिल्म का संगीत नौशाद ने और गीत शकील बदायुनी ने लिखे थे. आज के जो युवा अभिनेता हैं उनको अपने टैलेंट को निखारने के लिए इस फिल्म को अवश्य देखना चाहिए.