अप्रैल महीने में अम्बाला रेलवे स्टेशन पर किया था महिला को रेस्क्यू।
- एक अन्य केस में राजस्थान से गुमशुदा महिला को मिलवाया उसके बेटों से।
रिपोर्ट नफीस उर रहमान
चंडीगढ़, 10 जून – प्रदेश के सभी जिलों में स्थापित एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट्स बिछड़े लोगों को मिलाने का काम कर रहा है। कई ऐसे संवेदनशील केस भी आ जाते है जहाँ टीम को एहतियात बरतने के साथ साथ लगातार कॉउन्सिलिंग करते रहना होता है ताकि गुमशुदा से ऐसी कोई जानकारी प्राप्त हो सके जहाँ से उसके परिवार को ढूंढा जा सके। गुमशुदा औरतों और बच्चों के मामले में पुलिस द्वारा पीड़ितों से प्रेम और अपनत्व के भाव से मिलना होता है ताकि केस का निस्तारण किया जा सके।
ऐसे ही एक केस में स्टेट क्राइम ब्रांच, हरियाणा के अंतर्गत कार्य करने वाली एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट, यमुनानगर ने मानवता की मिसाल पेश की है। मामले की जानकारी देते हुए पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि जानकारी देते हुए बताया कि अप्रैल माह में एक महिला, जो की मानसिक बीमार प्रतीत हो रही थी। सुचना देने पर स्थानीय पुलिस ने महिला का मेडिकल करवा एक निजी आश्रम में शिफ्ट करवाया। उक्त केस की सूचना प्राप्त होने पर एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट यमुनानगर इंचार्ज एएसआई जगजीत सिंह पहुंचे और कॉउन्सिलिंग की।
5 माह की गर्भवती थी पीड़िता, बिहार पुलिस की सहायता से ढूंढा पंजाब में परिवार को।
पुलिस प्रवक्ता ने जानकारी देते हुए बताया कि गुमशुदा महिला अपने तीनों बच्चों को याद कर बार बार रो रही थी। मेडिकल में गुमशुदा महिला के 5 माह कि गर्भवती होने का पता चला, इस कारण से भी टीम काफी संजीदा होकर इस केस पर काम कर रही थी। कॉउन्सिलिंग के दौरान गुमशुदा ने बताया कि उसके पास 3 बच्चे है जिनमें दो बेटे और एक बेटी है। उसे अपने बच्चों के नाम के अलावा और कुछ याद नहीं था। स्थिति को समझते हुए यूनिट यमुनानगर इंचार्ज एएसआई जगजीत सिंह ने 15 दिन बाद दोबारा कॉउन्सिलिंग करने का निर्णय लिया। दोबारा बातचीत करने पर पीड़िता ने अपना नाम बताया और जानकारी दी कि वह अम्बाला रेलवे स्टेशन पर अपने परिवार से बिछड़ गई थी। गुमशुदा महिला ने बताया कि उसका पति मलखा बठिंडा के माल गोदाम में पल्लेदारी का काम करता है और वो ट्रैन में अपने पति और बच्चों के साथ सफर कर रही थी। पुलिस प्रवक्ता ने जानकारी देते हुए बताया की परिवार का स्थाई पता ना होने और कोई फ़ोन नंबर ना उपलब्ध होने के कारण परिवार ढूंढने में काफी समस्या आ रही थी। तीसरी बार फिर से जगजीत सिंह द्वारा महिला की काउंसिलिंग की गई और उसके सुसराल के बारे में पूछा गया तो महिला ने “मदनपुर” नाम बताया। इसी नाम का आधार बनाकर एएचटीयू यमुनानगर यूनिट ने मदनपुर को ढूँढना शुरू किया तो बिहार के खगरिया जिले में मदनपुर पाया गया। उक्त क्षेत्र के थाना मुरकाही के एसएचओ से केस के बाबत बात की गई। थाने के एसएचओ ने कुछ दिन का समय माँगा। थोड़े ही दिन एसएचओ ने फ़ोन कर सूचना दी कि महिला के ससुराल से संपर्क हो गया है और वहां पति मलखा के भाई जितेंदर से बात हुई। जितेन्दर ने महिला को पहचाना और मलखा से फ़ोन के द्वारा संपर्क साधा। मलखा को फ़ोन पर एएचटीयू यमुनानगर ने सूचित किया और बताया कि उसकी पत्नी यहाँ हरियाणा में सुरक्षित है। मलखा तीनों बच्चों के साथ अपनी पत्नी को लेने यमुनानगर आया। सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद महिला को सकुशल उसके परिवार को सौंपा गया। एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग टीम ने तत्परता और संजीदगी से इस मामले को सुलझाने में सफलता हासिल की।
7 नंबर टेम्पो का आधार बना ढूंढा परिवार, 5 महीने से लापता माँ को मिलवाया
ऐसे ही एक अन्य केस में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट यमुनानगर ने 5 महीने से लापता मानसिक दिव्यांग माँ को उसके परिवार से मिलवाया। पुलिस प्रवक्ता ने जानकारी देते हुए बताया कि एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट यमुनानगर इंचार्ज एएसआई जगजीत सिंह को सूचना मिली कि पिछले 5 महीने से एक मानसिक दिव्यांग जिनकी उम्र 48 वर्ष थी, वह एक यमुनानगर के निजी आश्रम में रह रही थी। एएचटीयू इंचार्ज ने महिला की कॉउन्सिलिंग की तो पता चला महिला को ज़्यादा कुछ याद नहीं है और उसे सिर्फ इतना पता है कि राजस्थान के अजमेर में दरगाह शरीफ से उनके घर के लिए 7 नंबर टेम्पो जाता था। इस जानकारी को आधार बनाकर 7 नंबर के टेम्पो के रास्ते में आने वाले सभी गाँव के मुखियाओं को महिला का फोटो भेजा गया। इसी दौरान, नगर अजमेर, धरती वीर चौक पर रह रहे महिला के दो बेटों राहुल और चेतन को इस बारे में जानकारी प्राप्त हुई। दोनों बेटों ने एएचटीयू यमुनानगर से संपर्क साधा और वीडियो कॉल पर अपनी माँ की पहचान की। सभी औपचारिकताएं पूरी कर महिला को उसके बेटों को सकुशल सौंप दिया गया है।